अलिफ लैला – ( Part 5 ) अबुल हसन और हारूं रशीद की प्रेयसी शमसुन्निहर की कहानी
धीरे-धीरे शाम होने लगी और चलते-चलते जौहरी थक भी गया था। साथ ही उसकी घबराहट भी बढ़ने लगी। डर के मारे जौहरी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह उस अजनबी से कुछ पूछ सके। थोड़ी ही देर में दोनों दजला नदी पर पहुंचे। दोनों ने नांव पर बैठकर नदी पार की और दोनों नदी के दूसरे वाले क्षेत्र में पहुंच गए। नदी पार करते ही एक बार फिर दोनों गलियों में चलते जा रहे थे। चलते-चलते दोनों एक एक मकान के सामने पहुंचे और वहां पहुंचकर उस आदमी ने ताली बजाई।
ताली की आवाज सुनकर उस घर का दरवाजा खुला और दोनों घर के अंदर गए। जौहरी जैसे ही घर के अंदर गया, तो उसने देखा वहां कई सारे लोग बैठे थे। उन लोगों ने जौहरी का स्वागत किया और आदरपूर्वक अपने पास बैठने को कहा। थोड़ी देर में उनका मालिक वहां आया। उसके बाद उन लोगों ने जौहरी से पूछा कि क्या उसने उन्हें पहले कभी देखा? जौहरी ने कहा ‘नहीं, मैंने पहले कभी न तुम लोगों देखा है न ही यह नदी पार की है।’ उसके बाद अचानक उन लोगों ने जौहरी को कहा कि पिछले रात उसके साथ जो भी हुआ वह उन्हें बताए। जौहरी हैरान हो गया कि उन्हें इन सबका कैसे पता चला। तब उन लोगों ने कहा कि उन्हें यह सारी बातें उस स्त्री और पुरुष से पता लगी है। हालांकि, वे लोग जौहरी से भी सारी बात जानना चाहते थे। ये सब सुनते ही जौहरी को समझते देर न लगी कि ये लोग वही डाकू तो नहीं है।
ये सब सुनकर जौहरी ने कहा कि ‘दोस्तों, मेरे साथ जो हुआ वह हुआ, लेकिन मुझे उस व्यक्ति और स्त्री की चिंता सता रही है। अगर तुम सबको उनके बारे में कुछ पता हो तो मुझे बताना।’ इतने में उन्होंने कहा कि जौहरी उनकी चिंता छोड़ दे क्योंकि वो दोनों सुरक्षित हैं। साथ ही उसने कहा कि उन दोनों ने ही जौहरी का पता दिया है और उन्होंने बताया है कि जौहरी उनका मददगार है। आगे डाकुओं ने कहा कि ‘हम लोग किसी पर दया नहीं करते है, फिर भी हमने उन दोनों का पूरा ख्याल रखा है और तुम्हें भी कोई परेशानी नहीं होने देंगे।’
जौहरी ने डाकुओं का आभार प्रकट किया। इसके साथ ही जौहरी ने शहजादे और शमसुन्निहार की पूरी प्रेम कहानी बताई। यह सब जानकर वे लोग हैरान हो गए और कहा, ‘क्या यह व्यक्ति फारस के राजा बका का बेटा अबुल हसन है और वह स्त्री खलीफा की प्रिय शमसुन्निहार है?’ जौहरी ने उनके सवालों का जवाब हां में दिया। यह सब जानने के बाद डाकुओं ने अबुल हसन और शमसुन्निहार के पास जा कर माफी मांगी।
उसके बाद उन डाकुओं ने चोरी का कुछ सामान देकर उन तीनों को सुरक्षित नदी के उस पार पहुंचाने का वादा किया और साथ ही उनका राज छुपाने के लिए वादा लिया। उन तीनों ने कसम खाई कि वे लोग डाकुओं के बारे में किसी को नहीं बताएंगे।
इसके बाद एक डाकू ने उन तीनों को नदी के पार छोड़ दिया। हालांकि, तट पर आते ही सिपाहियों ने उन्हें देख लिया। वहीं, डाकू उन्हें देखते ही अपनी नाव लेकर भाग गया, लेकिन उन तीनों को सिपाहियों ने पकड़ लिया और पूछताछ करने लगे।
जौहरी ने झूठ बोलते हुए कहा कि डाकुओं ने उसके घर पर डाका डाला था और साथ में उन दोनों को भी पकड़ कर नदी के उस पार ले गए थे। न जाने डाकुओं ने क्या सोचा कि उन्होंने उन सबको नदी के इस पार पहुंचा दिया और लूटे हुए कुछ सामान भी वापस कर दिए है। गश्त लगा रहे सिपाही के मुखिया ने उसकी बात का विश्वास कर लिया। उसने फिर शहजादे और शमसुन्निहार से पूछा कि वे लोग कौन हैं। इस पर शहजादे ने कुछ नहीं कहा, लेकिन शमसुन्निहार ने सिपाहियों के दल के मुखिया को अलग ले जा कर कुछ बात की। उसके बाद उस मुखिया ने तुरंत घोड़े से उतर कर शमसुन्निहार को सलाम किया और आदेश देकर नांव मंगवाया। जहां एक नाव पर शमसुन्निहार को बिठा कर घर पहुंचाने का आदेश दिया। वहीं, दूसरी नाव पर शहजादे और जौहरी के साथ उनके सामान को रख कर उनके घर पहुंचाने के लिए भेज दिया। साथ ही उस नाव पर अपने दो सिपाही भी बैठा दिए ताकि दोनों सुरक्षित अपने घर पहुंच जाएं।
वे सिपाही उनके साथ तो चल दिए, लेकिन उन्होंने अपने मुखिया की बात नहीं माने और नाव को कारागार लेकर चले गए। कारागार के प्रधान अधिकारी ने इन लोगों से उनके बारे में पूछा, तो जौहरी ने इस अधिकारी को पूरी बात बताई और कहा कि ‘गश्त दल के मुखिया ने हम पर विश्वास कर के हमें हमारे घर पहुंचाने का आदेश दिया था, लेकिन ये सिपाही हमें लेकर यहां आ गएं।’ यह सुनकर कारागार के अधिकारी ने दोनों सिपाहियों को खूब डांटा और अन्य दो सिपाहियों को आदेश दिया कि दोनों को उनके सामान के साथ शहजादे के घर पहुंचा दे।
घर पहुंचेने के बाद वे इतने थक चुके थे कि उनसे चला भी नहीं जा रहा था। थोड़ी देर बात शहजादे ने अपने नौकरों को आज्ञा दी कि जौहरी को उसके घर पर पहुंचा दिया जाए। जौहरी के घर आते ही उसके घरवालों ने चिंता जताकर उससे पूछताछ शुरू कर दी की वह कहां था? उसने घरवालों की बात को टाल दी और खुद को थका हुआ बताकर अपने कमरे में सोने चला गया।
कुछ दिन बाद जौहरी अपना मन बहलाने के लिए अपने एक मित्र के घर जाने का विचार किया। दोस्त के घर जाते वक्त उसे फिर से वही सेविका मिली। जौहरी काफी डरा हुआ था, उसने सेविका को अपने पीछे आने का इशारा किया। उसके बाद वे एक सुनसान मस्जिद पर पहुंचे और सेविका ने जौहरी से पूछा कि वह डाकुओं से कैसे बचा। जौहरी ने पहले उसका हाल पूछा। सेविका ने कहा कि जब डाकू उनके घर पर आए, तो उनको लगा वे खलीफा के सिपाही हैं। अपनी जान बचाने के लिए वे लोग मकान की छत पर चढ़ गईं और एक भले व्यक्ति के घर में आ गईं। उसने दया करके रात भर उन्हें अपने यहां रहने दिया। सुबह होते ही वे तीनों अपने घर चल गए। महल में जाकर उन्होंने झूठ बोल दिया कि स्वामिनी अपनी एक सहेली के घर रूक गई।
सेविका ने आगे कहा, ‘कल आधी रात को घर के पीछे के घाट पर कुछ हलचल सुनी। जा कर देखा तो स्वामिनी नाव से आई थीं और उनके साथ दो लोग भी थे। फिर हमनें चुपके से उन दोनों आदमियों को एक हजार अशर्फियां दे कर विदा कर दिया। स्वामिनी अब ठीक हैं और उन्होंने हमें डाकुओं द्वारा पकड़े जाने और छूटने की पूरी घटना भी बताई है।’
इसके बाद दासी ने जौहरी को अशर्फियों की दो थैलियां दीं और कहा कि ‘हमारी स्वामिनी ने यह आपके लिए भेजा है। आपका जो भी नुकसान हुआ है आप इससे उसकी पूर्ति करें।’ जौहरी ने सेविका को धन्यवाद कहते हुए वह धन ले लिया। उन पैसों से उसने अपने मित्रों के चोरी हुए समानों की पूर्ति की और जो पैसे बचे थे उससे उसने एक बड़ा और सुंदर मकान बनवाना शुरू कर दिया।
एक दिन वह शहजादे के घर गया उसका हालचाल पूछने। शहजादे के नौकरों ने बताया कि वे जब से आए हैं सिर्फ अपने बिस्तर पर लेटे हैं। जौहरी शहजादे के पास गया और उसने सेविका का सारा समाचार सुनाया। शहजादे ने सब सुनने के बाद जौहरी का शुक्रिया किया।
शहजादे से मिलकर जौहरी जैसे ही घर पहुंचा शमसुन्निहार की वही सेविका रोते हुए उसके घर आई। उसने बताया कि उसकी और शहजादे की जान खतरे में है इसलिए दोनों को तुरंत शहर छोड़ देना चाहिए। सेविका ने कहा कि, उसके साथ की एक सेविका ने शायद खलीफा को सारी बात बता दी है। जिसके बाद खलीफा ने सिपाही भेज कर शमसुन्निहार को बंदी बना लिया है।
यह सुन कर जौहरी के होंश उड़ गए। उसने शहजादे को सारी बात बताई और शहर से दूर जाने की बात कही। शहजादे ने फौरन घोड़ें और कुछ अशर्फियां ली और कुछ सेवकों के साथ दोनों नगर से बाहर निकल गए। एक दिन दोपहर के समय जब वे एक पेड़ के नीचे आराम कर रहे थे कि तभी उनपर डाकुओं ने हमला कर दिया। डाकुओं ने उनके सभी नौकरों को मारकर दोनों का सारा सामान लूट लिया।
डाकुओं के जान के बाद दोनों एक मस्जिद पर पहुंचे। सुबह वहां नमाज पढ़ने आए एक व्यक्ति उन्हें देखा तो उसे उनपर दया आ गई। जौहरी ने उस व्यक्ति को डाकुओं के हमले की बात बताई। यह सब सुनकर वह आदमी दोनों को अपने घर पर चलने के लिए कहने लगा, लेकिन जौहरी ने उसकी बात नहीं मानी। जिसके बाद उस आदमी ने दोनों को खाना लाकर दिया। वहीं, शहजादे की हालत काफी खराब होने लगी थी और उससे कुछ नहीं खाया जा रहा था। शहजादे ने अपने जीवन का आखिरी समय भांपते हुए जौहरी से कहा, ‘अब मैं बच नहीं सकता। शमसुन्निहार से अलग होने का दुख अब मैं नहीं झेल सकता हूं। तुमसे बस मेरी अंतिम इच्छा है कि जब मैं मर जाऊं, तो मेरी लाश को इस भले इंसान के पास रखना और बगदाद जा कर मेरी मां को मेरी मरने की खबर देना और कहना कि मुझे दफन करवां दें।’
यह कह कर शहजादे ने अपने प्राण त्याग दिए। जौहरी अबुल के मरने के गम में देर तक रोता रहा। उसके बाद शव को उस आदमी के पास रखवाकर वह बगदाद की ओर चला पड़ा। बगदाद पहुंच कर उसने शहजादे की मां को उसकी मृत्यु की सूचना दी। शहजादे की मां रो-रोकर सेवकों के साथ शहजादे का शव लेने के लिए उस व्यक्ति के पास गई।
वहीं जौहरी अपने घर शहजादे की मौत का शोक मना ही रहा था कि शमसुन्निहार की वही सेविका आई। जौहरी ने उसे शहजादे के मृत्यु की सूचना दी। यह सुन कर सेविका ने रोते हुए कहा कि शमसुन्निहार भी अब इस दुनिया में नहीं रही। खलीफा ने उसे बंदी बनाया था, लेकिन दोनों के प्रेम को देखकर उसका दिल पसीज गया और उसने शमसुन्निहार को आजाद कर दिया। उसी शाम को शमसुन्निहार की हालत खराब हो गई और उसने अपने प्राण त्याग दिए।
उसका शव महल के अंदर बड़े मकबरे में दफनाया गया है। अब मैं चाहती हूं कि शहजादे का शव भी स्वामिनी की कब्र के बगल में दफनाया जाए, ताकि दोनों प्रेमी मर कर भी एक ही जगह रहें। उसने बताया कि खलीफा ने उसे शमसुन्निहार के कब्र की देखरेख करने की अनुमति दी है, तो वहां पर शहजादे की कब्र बनाने में कोई अड़चन नहीं आएगी।
शहजादे का शव आने पर जौहरी ने उसकी मां से अनुमती ली और शव को उसकी प्रेयसी के बगल में दफन करवा दिया। उसके बाद से लोग दूर-दूर के देशों से आ कर उनकी कब्रों पर मन्नत मांगते हैं।
शहरजाद ने इतना कहकर अपनी कहानी पूरी की। इतने में उसकी बहन दुनियाजाद ने कहा कि ‘यह बहुत खूबसूरत कहानी थी।’ उसने उससे पूछा कि ‘क्या तुम्हें और भी कोई कहानी आती है?’ शहरजाद ने कहा कि अगर उसे प्राणदंड न मिले, तो वह अगले दिन शहजादा कमरुज्जमां की कहानी सुनाएगी। उस कहानी को सुनने की इच्छा से महाराज ने उस दिन भी शहरजाद काे प्राणदंड नहीं दिया। जिसके बाद अगली सुबह शहरजाद ने नई कहानी शुरू की।