अलिफ लैला – ( Part 4 ) अबुल हसन और हारूं रशीद की प्रेयसी शमसुन्निहर की कहानी

 

सेविका बैठ गई और इतने में जौहरी ने कहा कि उसे पता है कि यह पत्र शमसुन्निहार ने शहजादा अबुल हसन के लिए लिखा है। यह सुनते ही सेविका डर गई। जौहरी ने कहा कि वह यह खत वह उसे रास्ते में ही दे सकता था, लेकिन उसे उससे कुछ पूछना है, इसलिए वह उसे यहां लेकर आया है। जौहरी ने पूछा, ‘तुम सच बताना कि तुमने ही शहजादे से कहा है ना कि मैंने उस व्यापारी को शहर छोड़ने के लिए उकसाया था।’ सेविका ने सब कुछ मान लिया कि उसने यह बात कही है। यह सुनते ही जौहरी बोला, ‘मैं तो खुद चाहता हूं कि अब व्यापारी की जगह मैं उनकी मदद करूं।’ उसने सेविका को भरोसा दिलाया कि वह अपनी जान जोखिम में डालकर भी उनकी मदद करेगा और उसने शमसुन्निहार से भी सारी बात बताने को कही। इतना कहकर जौहरी ने पत्र सेविका को दे दिया। साथ ही उसने कहा कि शहजादे को वह उनकी सारी बात-चीत बताए और शमसुन्निहार के पत्र के उत्तर में शहजादा जो लिखे उसे भी वह लौटते समय दिखाती जाए। जौहरी की बात मानते हुए सेविका ने ऐसा ही किया।

उसके बाद वह शमसुन्निहार शहजादे का पत्र लेकर पहुंची और उसने जौहरी के साथ हुई सारी घटना भी बताई। अगली सुबह सेविका जौहरी के पास गई और उसने कहा कि जौहरी के नेक विचार जानने के बाद शमसुन्निहार उनसे मिलना चाहती है और उन्होंने उसे महल आने को कहा।

यह सुनकर जौहरी परेशान हो गया और उसने कहा कि ‘इब्न ताहिर व्यापारी को महल में सभी जानते थे, इसलिए वह बिना रोक-टोक महल में जाता था, लेकिन उसे तो कोई नहीं जानता।’ सेविका ने उसे बहुत समझाया, लेकिन जौहरी महल में जाने के लिए तैयार नहीं हुआ। सेविका शमसुन्निहार के पास गई और जौहरी के न आने का कारण बताया। शमसुन्निहार ने सेविका को कहा कि वह जौहरी के घर जाकर उससे मिलेंगी, वह उसे यह खबर दे दे।

फिर वह अपनी सेविका के साथ जौहरी के घर पहुंची, जहां जौहरी ने बड़े सम्मान से उसका स्वागत किया। शमसुन्निहार ने जैसे ही अपने चेहरे से नकाब हटाया तो जौहरी उसे देखता ही रह गया। उसकी सुंदरता देखते ही जौहरी समझ गया कि शहजादा अगर इसके प्यार में है, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। शमसुन्निहार और जौहरी ने खूब बातें की। बातों-बातों में शमसुन्निहार ने जौहरी को धन्यवाद किया और अपने मन का सारा हाल बताकर वहां से चली गई।

शमसुन्निहार के जाते ही जौहरी शहजादे के पास गया और सारी बातें बताई। जौहरी को देखते ही वह उससे शमसुन्निहार से मिलाने की विनती करने लगा। जौहरी ने कहा कि उनका राजमहल या जौहरी के घर में मिलना सही नहीं है। इसलिए, वह एक सुंदर भवन को किराए पर लेगा जहां शमसुन्निहार और शहजादा बिना किसी डर के मिल सकें। यह सब सुनने के बाद शहजादा खूब खुश हुआ।

जौहरी ने सारी बातें शमसुन्निहार की सेविका को बताई और उसे भी दोनों की मदद करने को कहा। सेविका मदद के लिए तैयार हो गई और जौहरी के साथ जाकर एक बड़ा मकान पसंद किया और वापस महल चली गई। हालांकि, वह कुछ देर बाद फिर जौहरी के पास वापस आई और उसे अशर्फियों की एक थैली दी। उसने कहा कि यह उसकी मालकिन ने दी है, ताकि जौहरी उस बड़े मकान की सजावट करवा सके। सेविका के जाने के बाद जौहरी ने अपने दोस्तों के यहां से कई सोने-चांदी के बर्तन और सजावटी सामान से उस मकान को सजा दिया।

सारा इंतजाम करने के बाद जौहरी शहजादे को लेने गया और शहजादा भी तैयार होकर जौहरी के साथ चल पड़ा। जौहरी उसे सुनसान रास्तों से होकर बड़े मकान में ले आया। शहजादा वह बड़ा मकान और उसकी सजावट देखकर काफी खुश हुआ। वहीं, दिन ढ़लते ही शमसुन्निहार अपनी खास सेविका और अन्य दासियों को ले कर वहां आ गई। शहजादा और शमसुन्निहार ने जैसे ही एक दूसरे को देखा तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। दोनों के आंखों में खुशी के आंसू आ गए और वो दोनों बस एक दूसरे को देखते ही रह गए। जौहरी ने उन दोनों को धैर्य से काम लेने को कहा। उसके बाद उन लोगों ने खाना खाया और सब लोग बैठक में आ गए। इतने में शमसुन्निहार ने पूछा कि ‘यहां बांसुरी तो नहीं मिलेगी।’ जौहरी ने पहले से ही सारा इंतजाम कर रखा था। उसने एक बांसुरी ला कर उन्हें दी। शमसुन्निहार ने बांसुरी पर एक खूबसूरत धुन बजाई, जिससे उनके प्यार और बिछड़ने का सारा दर्द झलक रहा था। उसके बाद शहजादे ने भी उसके जवाब में उसी बांसुरी पर मधुर संगीत बजाया।

इसी बीच मकान के बाहर से आवाज आने लगी। तभी जौहरी का एक नौकर दौड़ता हुआ आया और बोला कि दरवाजे पर कई सारे लोग जमा हैं और वे दरवाजा तोड़ कर अंदर आने की कोशिश कर रहे हैं। आगे उसने कहा कि जब उसने उनसे पूछा कि वो लोग कौन हैं और क्या चाहते हैं, तो उन लोगों ने उसे पीटना शुरू कर दिया और वह जैसे-तैसे दरवाजा बंद कर के अंदर आ गया। यह सब सुनने के बाद जौहरी खुद बाहर दरवाजे के पास गया। उसने जैसे ही दरवाजा खोला तो देखा कि करीब सौ लोग हाथों में तलवार लिए खड़े हैं। जौहरी को लगा कि ये खलीफा के सैनिक होंगे। मौका पाते ही जौहरी पड़ोसी के घर की दीवार कूदकर उसके घर में घुस गया। वह पड़ोसी जौहरी को पहले से जानता था। उसने उसे अपने घर में छिपने की जगह दे दी।

आधी रात को जब सारा शोर खत्म हुआ, तो जौहरी पड़ोसी के घर से बाहर निकला और किराए के उस मकान में वापस गया। वहां जाने पर उसने देखा कि वहां पर कोई भी नहीं था और न ही कोई सामान था। तभी उसे मकान के एक कोने में छिपा हुआ एक आदमी दिखा। जौहरी ने पूछा, ‘कौन हो?’ वह आदमी जौहरी की आवाज पहचान गया और बाहर आया। वह जौहरी का ही एक नौकर था। जौहरी ने नौकर से पूछा कि क्या वे हथियारबंद लोग सिपाही थे? तब नौकर ने बताया कि वे लोग डाकू थे और सब कुछ लूट कर ले गए।

जौहरी को भी भरोसा हो गया कि वे लोग डाकू ही थे, क्योंकि वे घर का सारा सामान लूट ले गए थे। उसके बाद जौहरी सिर पिटने लगा और रोने लगा कि जिन दोस्तों से उसने सारा सामान लिया था, उन्हें वह क्या जवाब देगा। साथ ही उसे शहजादे और शमसुन्निहार की भी चिंता सताने लगी।

सुबह होने पर सारे शहर में चोरी की खबर आग की तरह फैल गई। जौहरी के दोस्त भी उसके घर पर उसे सहानुभूति देने के लिए आए। उन्हें पता था कि जौहरी ने वह मकान किराए पर लिया था। जौहरी के दोस्तों ने उसे चोरी हुई चीजों के लिए चिंता न करने की बात कही। लेकिन कौन जानता था कि जौहरी को शहजादे और शमसुन्निहार की चिंता हो रही थी। उसे न कुछ खाने का मन हो रहा था और न ही कुछ करने का।

अगली दोपहर जौहरी का एक सेवक आकर बोला कि उससे मिलने एक आदमी आया है। उस आदमी ने अंदर जा कर जौहरी से कहा कि वह उससे उसके किराए वाले मकान में बात करेगा। जौहरी यह सुनते ही चौंक गया कि उस अजनबी को किराए वाले घर के बारे में कैसे पता चला। वह व्यक्ति जौहरी को घुमावदार और सुनसान गलियों से ले जाने लगा। चलते-चलते उसने जौहरी से यह भी कहा कि इन्हीं रास्तों से वे डकैत उसके घर गए थे। ये सब सुनकर जौहरी को बड़ी ही हैरानी होने के साथ-साथ डर भी लग रहा था, क्योंकि वह अजनबी जौहरी को उसके किराए के मकान में नहीं, बल्कि किसी और जगह लेकर जा रहा है।

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