अलिफ लैला – ( Part 3 ) अबुल हसन और हारूं रशीद की प्रेयसी शमसुन्निहर की कहानी

व्यापारी ने उसे बताया कि शमसुन्निहार की सेविका अभी तक नहीं आई है। यह सुनकर शहजादा रोने लगा। व्यापारी ने दिलासा देते हुए कहा कि वह चिंता न करे, आज नहीं तो कल शमसुन्निहार की सेविका जरूर आएगी और कोई अच्छी खबर लाएगी। इतना कहकर व्यापारी अपने घर आ गया और घर आने पर उसने देखा कि शमसुन्निहार की सेविका उसका इंतजार कर रही है। उसने व्यापारी से शहजादे के बारे में पूछा। व्यापारी ने सारी बातें और शहजादे की हालत उसे बता दी।
सेविका ने बताया कि शमसुन्निहार की भी कुछ ऐसी ही हालत है। उसने कहा कि जब वह उनको छोड़कर महल वापस लौटी तो देखी शमसुन्निहार बेहोश थी। खलीफा भी सोच में पड़ गए कि वह क्यों बेहोश हो गई। उन्होंने सभी सेविकाओं से कारण जानना चाहा, तो सभी ने उनसे असली वजह छुपा ली। वहीं जब शमसुन्निहार के होंश में आने के बाद खलीफा ने उनसे कारण पूछा तो स्वामिनी ने झूठ बोलते हुए कहा कि वह खलीफा के आने की खुशी में बेहोश हो गई थी। यह सुनकर खलीफा को तसल्ली हुई और उसने शमसुन्निहार को आराम करने की सलाह दी और वहां से चले गए।
सेविका ने आगे कहा कि ‘उसके बाद स्वामिनी ने मुझे पास बुलाकर तुम लोगों का हाल पूछा। मैंने उन्हें आपके जाने की खबर तो दी, लेकिन शहजादे के बेहोश होने की बात नहीं बताई। रात भर मैं उन्हीं के साथ थी। वह रात भर शहजादे का नाम ले-ले कर रोती रही। सुबह खलीफा के आदेश से हकीम आया, लेकिन दवा-दारू से कोई लाभ नहीं हुआ। उल्टा उसकी हालत और भी ज्यादा खराब हो गई। दो दिन बाद जब उनकी तबियत थोड़ी ठीक हुई, तो उन्होंने मुझे तुम्हारे पास आने और शहजादे का समाचार लाने को कहा।’ व्यापारी ने कहा, ‘शहजादा बिलकुल ठीक है, किंतु शमसुन्निहार की बीमारी की बात सुन कर परेशान है। उनसे यह भी कहना कि वह खलीफा के सामने ऐसा कुछ न कह दे कि जिससे हम सब मुसीबत में फंस जाए।’
सेविका के वहां से जाने के बाद व्यापारी शहजादे के घर गया। उसने शहजादे को शमसुन्निहार की सेविका के आने की बात बताई और उसके द्वारा कही गई सारी खबर सुनाई। शहजादे ने व्यापारी को अपने यहां रात भर के लिए रोक लिया। अगली सुबह व्यापारी वापस अपने घर आया, तो कुछ ही देर बाद शमसुन्निहार की सेविका उसके पास आई और शमसुन्निहार द्वारा भेजे गए पत्र के बारे में जानकारी दी। यह सुनते ही व्यापारी सेविका को लेकर शहजादे के यहां गया और पत्र की बात बताई। शहजादा पत्र की बात सुन कर उठ बैठा। शहजादे ने सेविका से पत्र लेकर आंखों से लगाया। उस पत्र में शमसुन्निहार ने अपने बिछड़ने के दर्द के बारे में लिखा था। पत्र पढ़ने के बाद शहजादे ने उस पत्र के जवाब में एक खत लिख कर सेविका को वापस दे दिया।
यह सब होता देख व्यापारी सोच में पड़ गया कि शमसुन्निहार की सेविका अगर ऐसे ही रोज-रोज उसके यहां आएगी और उसे हर रोज शहजादे के पास जाना पड़ता रहा तो क्या होगा। शहजादा और शमसुन्निहार तो एक-दूसरे के प्यार में सब कुछ भूल चुके हैं, लेकिन अगर खलीफा को इसका पता चला तो वह किसी को नहीं छोड़ेगा। इन सब में उसका मान-सम्मान तो जाएगा ही, साथ ही उसे और उसके पूरे परिवार को जान का जोखिम भी हो सकता है। ये सब सोच कर व्यापारी ने शहर छोड़ने का मन बना लिया और किसी दूसरे शहर जाकर बसने की ठान ली।
एक दिन जब व्यापारी इन्हीं सब चिंताओं में अपनी दुकान में बैठा था, तभी उसका एक जौहरी दोस्त उससे मुलाकात करने आ गया। वह शमसुन्निहार की सेविका को अक्सर व्यापारी के पास आते देखता और दोनों को शहजादे के यहां जाते देखता था। व्यापारी को चिंता में देख वह समझ गया था कि उसे कोई परेशानी है। उसने बातों-बातों में उससे पूछ ही लिया कि खलीफा के महल की सेविका उसके यहां क्यों आती है। यह सुनकर व्यापारी डर गया। उसने टालते हुए कहा कि ‘बस कुछ वस्तुएं खरीदने आती है।’ यह सुनकर जौहरी को तसल्ली नहीं हुई और उसने बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि इसके पीछे बात कोई और है। व्यापारी समझ चुका था कि शायद उसका जौहरी दोस्त सबकुछ समझ चुका है और उससे यह सब छुपाने का कोई फायदा नहीं है। फिर व्यापारी ने जौहरी को कसम देते हुए सारी बात बताई और अपने मन का डर भी बताया।
यह सब सुन कर जौहरी सोच में पड़ गया और वहां से चला गया। कुछ दिनों बाद जौहरी जब व्यापारी की दुकान पर फिर आया, तो उसने दुकान बंद देखी। जौहरी को समझते देर नहीं लगी कि व्यापारी किसी दूसरे शहर चला गया है। जौहरी के मन में शहजादे के लिए दया की भावना आने लगी और उसने व्यापारी की जगह खुद शहजादे की मदद करने की ठान ली। वह जौहरी शहजादे के यहां गया, शहजादे को जब पता चला कि वह एक प्रतिष्ठित जौहरी है, तो उसने उसका खूब मान-सम्मान किया। जौहरी ने कहा, ‘भले ही आपसे मैं पहली बार मिल रहा हूं, लेकिन मैं आपकी मदद करना चाहता हूं। मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूं। शहजादे ने हामी भरते हुए कहा कि ‘आपको जो पूछना है आप पूछ सकते हैं।’
जौहरी ने व्यापारी के दुकान बंद होने की बात बताई और कहा कि व्यापारी ने उससे कहा था कि वह यह शहर छोड़कर कहीं और बस जाएगा। शायद, वह सच में किसी और शहर चला गया है। इतना बताने के बाद जौहरी ने शहजादे से पूछा कि क्या उसे व्यापारी के नगर छोड़ने का कारण पता है।
जौहरी की बात सुन कर शहजादा हैरान रह गया। उसने जौहरी से पूछा कि ‘क्या तुम्हारी बात पक्की है कि व्यापारी बगदाद से चला गया है?’ जौहरी ने भी संकोच करते हुए कहा कि ‘मुझे ऐसा ही लगता है।’ जिसके बाद शहजादे ने अपने एक नौकर को व्यापारी के यहां जाने और उसके बारे में पता लगाने का आदेश दिया। कुछ देर बाद जब नौकर वापस आया, तो उसने कहा कि व्यापारी के रिश्तेदारों ने बताया है कि कुछ दिन पहले ही व्यापारी बसरा चला गया है और अब वह वहीं रहेगा। उसके बाद नौकर ने धीरे से कहा कि किसी अमीर स्त्री की सेविका शहजादे से मिलने आई है। शहजादे को समझते देर नहीं लगी कि वह स्त्री कोई और नहीं, बल्कि शमसुन्निहार की सेविका ही है। उसने उसे बुलाने को कहा और इसी बीच उसके आने से पहले जौहरी उठकर दूसरे कमरे में चला गया। सेविका ने वहां आकर शहजादे से कुछ बात की और वहां से चली गई।
अब जौहरी एक बार फिर आ कर शहजादे के पास बैठा और कहा, ‘लगता है खलीफा के महल से आपका कोई गहरा रिश्ता है।’ शहजादा यह सुनकर चिढ़ गया और कहा, ‘क्या तुम्हें पता है कि यह जो स्त्री आई थी, कौन थी?’ जौहरी ने कहा, ‘मैं इसे और इसकी मालकिन दोनों को अच्छे से जानता हूं। यह शमसुन्निहार की सेविका है और शमसुन्निहार खलीफा की प्रिय है। यह हमेशा मेरी दुकान पर जेवर खरीदने आती है। इसे मैंने कई बार उस व्यापारी के पास भी आते-जाते देखा था।’
शहजादा यह सुन कर डर गया और बोला कि ‘मुझे सच-सच बताओ कि क्या तुम इस सेविका के यहां आने का कारण जानते हो?’ जौहरी ने व्यापारी से हुई सारी बातें बता दी और कहा, ‘व्यापारी के जाने के बाद मुझे आपकी हालत पर बहुत दया आ गई और इसलिए मैं यहां आपकी मदद करने आ गया। आप मुझपर भरोसा कर सकते हैं।’
शहजादे को उसकी बातों पर भरोसा हुआ और उसने अपनी दिल की बात जौहरी को बताई। साथ ही शहजादे ने कहा कि ‘शमसुन्निहार की सेविका ने उसे यहां बैठे देख लिया था। उसे लगता है कि तुम्हीं ने व्यापारी को शहर छोड़ने की सलाह दी है। अब मुझे लगता है कि सेविका ने यह बात शमसुन्निहार को भी बता दी होगी।’ यह सब सुनने के बाद जौहरी ने कहा, ‘मैंने व्यापारी को शहर से जाने की सलाह नहीं दी। हां, उसका मान-सम्मान बचाने के लिए मैंने उसे बसरा जाने से रोका भी नहीं।’ शहजादे ने बोला, ‘मैं तुम पर विश्वास तो कर सकता हूं, लेकिन शमसुन्निहार की सेविका को तुम पर भरोसा नहीं है।’
काफी देर बात करने के बाद जौहरी ने शहजादे से विदा लिया। वहीं, शहजादे ने सेविका को विदा करते हुए कहा था कि अगली बार वह शमसुन्निहार से पत्र लिखवाकर लाए। सेविका ने शमसुन्निहार को सारी बातें बताईं। शमसुन्निहार ने अपने मन का हाल एक लंबे पत्र के जरिए शहजादे को लिखा और उस पत्र में व्यापारी के जाने का दुख भी व्यक्त किया।
सेविका पत्र लेकर शहजादे के पास जा ही रही थी कि खत रास्ते में गिर गया। थोड़ी दूर जाने के बाद उसे इस बात का एहसास हुआ। वह वापस जब उसी रास्ते पर गई, तो जौहरी को पत्र पढ़ता हुआ देखी। उसने जौहरी से पत्र वापस देने को कहा, लेकिन उसने उसकी एक न सुनी। वह खत लेकर अपने घर आ गया और सेविका भी उसके पीछे-पीछे उसके घर आ गई। जौहरी ने पत्र एक तरफ रखते हुए सेविका को बैठने का इशारा किया।