अलिफ लैला – ( Part 2 ) अबुल हसन और हारूं रशीद की प्रेयसी शमसुन्निहर की कहानी

वहां मौजूद सेविकाओं ने दौड़ कर दोनों को संभाला और उन्हें होश में लाया। होश में आते ही शमसुन्निहार ने व्यापारी के बारे में पूछा कि वह कहां है। बेचारा वह व्यापारी अपनी जगह में बैठकर डर के मारे कांप रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अगर इसके बारे में खलीफा को पता चला तो क्या होगा। व्यापारी यह सोच ही रहा था कि तभी शहजादा व्यापारी के पास आकर बोला कि शमसुन्निहार ने उसे याद किया है। जब वह शमसुन्निहार के पास गया, तो शमसुन्निहार ने कहा कि ‘मैं आपकी एहसानमंद हूं कि आपने मुझे शहजादे से मिलवाया।’ व्यापारी ने कहा, ‘मैं इस बात से अचंभित हूं कि आप दोनों एक-दूसरे से मिलने के बाद भी इतने बेचैन क्यों हैं।’ शमसुन्निहार ने व्यापारी को जवाब देते हुए कहा कि ‘सच्चे प्यार करने वालों की यही हालत होती है, उन्हें बिछड़ने का दुख तो सताता ही है, मिलने से भी उनका मन बेचैन होता है।’
इतना सबकुछ होने के बाद शमसुन्निहार सेविकाओं को सबके लिए भोजन लाने को कहा। सबने तसल्ली से खाना खाया, फिर शमसुन्निहार ने शरबत का गिलास लिया और गाना गाते हुए उसे पी गई। वहीं, दूसरा गिलास उसने शहजादे को दिया और शहजादे ने भी एक गीत गाते हुए शरबत पी लिया।
इसी बीच एक सेविका ने शमसुन्निहार को खलीफा के सेवक मसरूर के आने की खबर दी। उसने कहा कि ‘मसरूर खलीफा का संदेश लेकर आया है।’ शहजादा और व्यापारी यह बात सुन कर डर गए। शमसुन्निहार ने उन्हें भरोसा दिया और सेविका से मसरूर को बातों में उलझाए रखने को कहा ताकि वह शहजादे और व्यापारी को छुपा सके। इसके बाद शमसुन्निहार ने शहजादे और व्यापारी को ऐसी जगह छिपा दिया जहां उन्हें कोई देख न सके। उसके बाद उसने मसरूर को बुलाने की इजाजत दी।
मसरूर अपने सेवकों के साथ अंदर आया और शमसुन्निहार के सम्मान में झुककर उसे सलाम किया। मसरूर ने बताया कि खलीफा शमसुन्निहार से मिलना चाहते हैं। शमसुन्निहार खुश हुई और बोली, ‘यह तो मेरी खुशकिस्मती है कि वे मुझसे मिलना चाहते हैं, मैं तो उनकी सेविका हूं। वह जब मन तब आ सकते हैं, लेकिन मसरूर जी, आप उन्हें कुछ देर बाद लेकर आएं क्योंकि मैं नहीं चाहती कि जल्दबाजी में खलीफा के स्वागत में कुछ कमी रह जाए।’
इतना कहकर शमसुन्निहार ने जैसे-तैसे मसरूर और उसके सेवकों को भेज दिया और नम आंखों से शहजादे के पास आ गई। शमसुन्निहार के आंखों में आंसू देख व्यापारी घबरा गया, उसे लगा कि कहीं उनका राज सबको पता तो नहीं चल गया। शहजादा भी काफी परेशान था। इसी बीच शमसुन्निहार की एक सेविका ने कहा कि ‘ खलीफा के सेवक आने लगे हैं और अब खलीफा किसी भी वक्त वहां आ सकते हैं।’
शमसुन्निहार ने रोते हुए सेविका से उन दोनों को बाग के दूसरे कोने में बने घर में ले जाने को कहा। फिर मौका मिलते ही उन्हें खुफिया रास्ते से दजला नदी के किनारे ले जाकर नाव पर बैठा देने को कहा। यह कह कर उसने शहजादे को गले लगा कर विदा किया।
सेविका ने दोनों को उस मकान में बंद का दिया। वे दोनों काफी देर तक उस मकान में इधर-उधर देखते रहे कि शायद उन्हें वहां से निकलने का कोई रास्ता मिले, लेकिन उन्हें कोई रास्ता नहीं मिला। अचानक उन्होंने खिड़की से देखा कि खलीफा के अंगरक्षक बगीचे में आ रहे हैं, साथ ही खलीफा का मुख्य सेवक मसरूर भी था। यह देख वो दोनों काफी डर गए। दरअसल, खलीफा जब भी रात को किसी सेविका के यहां जाते थे, तो सुरक्षा का कड़ा इतेजाम किया जाता है।
शमसुन्निहार ने अपनी सेविकाओं के साथ खलीफा का स्वागत किया। वह आगे बढ़ी और उसने खलीफा के पैरों पर सिर झुकाकर सम्मान किया। खलीफा ने उसे गले लगाया और कहा, ‘तुम मेरे पैर मत पड़ो, बल्कि मेरे पास बैठो ताकि मैं तुम्हें देख सकूं।’ शमसुन्निहार खलीफा के पास बैठ गई और एक गाने वाली को इशारा कर गाने को कहा। उसने एक जुदाई का गीत गाना शुरू कर दिया। खलीफा को लगा कि यह उनके न रहने से शमसुन्निहार अपने दुख को इस गीत के जरिए जता रही है, लेकिन सच तो यह था कि वह गाना शमसुन्निहार और शहजादे के बिछड़ने के दुख की कहानी बयां कर रहा था।
गाना सुनकर शमसुन्निहार को चक्कर आ गया और वह नीचे गिर पड़ी। सेविकाओं ने दौड़ कर उसे संभाला। वहीं शहजादा भी उधर गीत सुन कर दुखी होकर बेहोश हो गया, लेकिन व्यापारी ने उसे संभाल लिया। थोड़ी ही देर में वह सेविका व्यापारी के पास आकर शमसुन्निहार का हाल बताई और उन्हें वहां से चले जाने को कहा। यह सुनकर व्यापारी ने कहा कि ‘तुम देख नहीं रही हो कि शहजादा बेहोश है, ऐसी हालत में हम बाहर कैसे जाएंगे।’ यह देख सेविका ने जल्दी से पानी और बेहोशी में सुंघानेवाली दवा दी, जिससे शहजादे को होंश आ गया।
इसके बाद सेविक उन दोनों को खुफिया रास्ते से बाहर उस दजला नदी के पास ले गई। वहां पहुंच कर सेविका ने धीरे से एक व्यक्ति को आवाज लगाई, जो नाव लेकर वहां आ गया। सेविका ने दोनों को नाव पर बिठा कर विदा किया। शहजादे की हालत अब भी खराब थी। व्यापारी उसे खुद को संभालने को कहता-समझाता। वह कहता, ‘हमलोगों को बहुत दूर जाना है, अगर इस बीच हमें किसी सिपाही ने देख लिया तो वे हमें चोर समझेंगे और हमारी जान मुसीबत में पड़ सकती है।’
बहुत डरते हुए और खुदा का नाम लेते हुए दोनों एक सुरक्षित जगह पर पहुंचे, लेकिन शहजादे की मानसिक हालत अब भी ठीक नहीं थी और उसमें चलने की भी हिम्मत नहीं थी। शहजादे की ऐसी स्थिति देखकर व्यापारी चिंता में पड़ गया। इसी बीच अचानक उसे याद आया कि यहां पास में ही उसका एक दोस्त रहता है। वह शहजादे को अपने उस दोस्त के यहां ले गया। उसके दोस्त ने उन्हें बैठने के लिए कहा और पूछा कि वे ऐसी हालत में कहां से आए रहे हैं। व्यापारी ने असली वजह को छिपाते हुए कहा, ‘एक आदमी के पास मेरे कुछ रुपए उधार थे। मुझे जब पता चला कि वह नगर छोड़ कर भाग रहा है तो मैं उसका पीछा करते हुए यहां तक आ गया। मेरे साथ यह जो आदमी है, उस भगोड़े व्यक्ति के बारे में जानता है। इसी ने उसका पीछा करने में मेरी मदद की, लेकिन अचानक बीच रास्ते में यह बीमार हो गया और वह भगोड़ा भागने में कामयाब हो गया।’
व्यापारी के मित्र ने दोनों को रातभर रहने के लिए स्थान दिया और शहजादे की देखभाल के लिए वैद्य बुलाने की सोचा। हालांकि, व्यापारी ने कहा कि ‘तुम परेशान मत हो, यह रात भर आराम से सोएगा, तो सुबह घर जा सकेगा।’ यह सुनकर दोस्त ने दोनों को सोने को कहकर वहां से चला गया। वहीं, शहजादे की हालत ठीक न होने के कारण उसे जल्दी ही नींद आ गई, लेकिन थोड़ी ही देर में उसने सपना देखा कि शमसुन्निहार बेहोश हो कर खलीफा के पैरों पर गिर गई है। वह अचानक जागकर रोने लगा। जैसे-तैसे रात बीती और सुबह होते ही व्यापारी ने दोस्त से विदा लिया और शहजादे को अपने साथ अपने घर ले आया। अपने लिए घरवालों की चिंता देख उसने बहाना बना दिया कि काम के सिलसिले में उसे अचानक बाहर जाना पड़ गया था।
शहजादा कुछ दिनों तक व्यापारी के घर पर ही रहा, फिर कुछ दिनों बाद शहजादे के रिश्तेदार आए और उसे घर ले गए। विदा होते समय शहजादे ने व्यापारी से कहा कि ‘तुम मुझे शमसुन्निहार की खबर देते रहना क्योंकि मुझे उसकी फिक्र हो रही है।’ व्यापारी ने शहजादे को दिलासा दिया कि वह ठीक होगी और एक न एक दिन उसकी खास सेविका जरूर कोई समाचार लेकर आएगी।
ये सब होने के कुछ दिनों बाद व्यापारी शहजादे से मिलने उसके घर गया तो देखा कि वह बहुत बीमार था और उसके कई रिश्तेदार और वैध वहां उसके पास बैठे थे। उन्होंने व्यापारी को कहा कि हकीम ने बहुत प्रयास किया, लेकिन उसपर किसी भी दवा का असर नहीं हुआ। तभी शहजादे ने आंखें खोलीं और उसने जब अपने सामने व्यापारी को देखा तो उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई। उसे उम्मीद थी कि व्यापारी शमसुन्निहार की कोई खबर लेकर आया होगा।
शहजादे ने वहां बैठे सभी लोगों से जाने को कहा। उनके जाते ही शहजादे ने व्यापारी से कहा, ‘दोस्त, देखो शमसुन्निहार के प्यार में मेरी क्या हालत हो गई है। मेरे सारे रिश्तेदार और दोस्त मेरी हालत देखकर परेशान हैं। उन्हें मेरी हालात की असली वजह नहीं पता है। मैं उन्हें असली कारण बता भी नहीं सकता हूं, लेकिन तुम्हें देखकर मुझे बड़ी हिम्मत मिली है। क्या तुम्हारे पास शमसुन्निहार की कोई खबर है?’