अलिफ लैला – ( Part 5 ) कमरुज्जमां और बदौरा की कहानी

असद को बलि चढ़ाने के लिए एक जहाज में बैठा दिया। उस जहाज की जांच करने के लिए बादशाह के कुछ सैनिक भी पहुंचे, लेकिन असद को उन्होंने संदूक में छुपा रखा था। वो किसी भी सैनिक को नहीं दिखा । सैनिकों के जाते ही उन लोगों ने असद को संदूक से बाहर निकालकर उसके पैरों को बांध दिया।
तभी अचानक उल्टी दिशा में हवा होने के कारण जहाज कवाला राज्य की जगह एक ऐसे राज्य में पहुंच गया जहां मरजीना नाम की रानी का राज्य था। रानी मरजीना उस वक्त समुद्र के किनारे ही थी। जहाज को अपने राज्य के समीप देखकर वह खुद जहाज के पास पहुंच गई। असद के पैर में बेड़ियां और उसकी खराब हालत को देखकर मरजीना को बहुत गुस्सा आया। उसने सबसे कहा कि तुम दुश्मन देश के लोग हो। मैं चाहूं, तो तुम सबको मार दूं। लेकिन, मैं ऐसा करूंगी नहीं। तुमने जिसे इस तरह बांधकर रखा है उसे छोड़कर मेरे हवाले कर दो और फौरन यहां से भाग जाओ।
उसके बाद रानी मरजीना ने असद को अच्छे कपड़े और खाना दिया। उसके बाद कुछ देर असद के साथ मरजीना बाग में घूमने लगी। फिर असद ने उसे अपनी पूरी कहानी सुनाई। यह सब सुनकर मरजीना को काफी दुख हुआ। उसने अपने राजमहल का पैसों संबंधी कामकाज देखने के लिए असद को रखने का फैसला किया। फिर दोनों ने कुछ देर बात की और मरजीना अपने महल में चली गई, लेकिन असद वही बाग में ही सो गया।
असद को बलि चढ़ाने के लिए ले जा रहा बहराम चुपके से मरजीना के बाग में पीने लायक पानी लेने के लिए आया। तभी उसने असद को भी वहां देखा, तो पानी और असद दोनों को लेकर वह चला गया। सुबह होने से पहले ही बहराम जहाज लेकर भाग गया। सुबह जब मरजीना को असद कहीं नहीं दिखा, तो वह परेशान हो गई। काफी देर तक उसने असद के न मिलने पर मरजीना को बहराम पर शक हुआ।
रानी मरजीना ने तुरंत अपने सारे जहाज निकलवाए और बहराम के देश की ओर बढ़ने लगी। कुछ घंटों में ही मरजीना के सभी जहाजों ने बहराम के जहाज को घेर लिया। मरजीना को वहां देखकर बहराम ने असद को समुद्र में फेंक दिया। असद को अच्छे से तैरना आता था, वो तैरते हुए किनारे पर पहुंच गया और एक मस्जिद में जाकर सो गया। उधर मरजीना ने उनका जहाज किनारे में उताकर पूरी तलाशी ली, लेकिन असद मिला नहीं।
बहराम ने जहाज से उतकर जैसे ही नगर की ओर देखा, तो उसे पता लगा कि यह उसी का शहर है। फिर बहराम छुपते-छुपाते उसी मस्जिद में पहुंच गया, जहां असद को सो रहा था। उसने असद को देखकर उसे फिर उसी जेल में पहुंचा दिया जहां से उसे लाया था। बहराम ने कहा कि असद तुम इस साल बलि से बच गए, लेकिन अगले साल नहीं बच पाओगे।
दोबारा उस जेल में उन लड़कियों में से एक लड़की बोस्तान आई, जो रोज असद को मारती थी। उसे देखकर असद ने कहा कि इससे तो अच्छा होता कि मेरी बलि ही चढ़ जाती। उस लड़की ने कहा कि मैं तुम्हें आज से नहीं मारूंगी। मुझे समझ आ गया है कि तुम्हें इस तरह से रोज मारना और दुखी करना गलत है। फिर असद ने कहा कि भले ही तुम न मारो, लेकिन वो दूसरी लड़की तो मुझे जरूर मरेगी। तब बोस्तान ने कहा कि आज के बाद से सिर्फ मैं ही इस जेल में आऊंगी और तुम्हें बिना मारे अच्छी-अच्छी चीजें खाने के लिए दूंगी।
कुछ दिनों के बाद बोस्तान के कानों तक वह एलान पहुंचा कि जो भी अमजद के भाई असद को ढूंढकर लाएगा उसे खूब पैसा मिलेगा। अगर किसी के घर में असद मिला, तो उसका घर खुदवा कर सभी को प्राण दंड दिया जाएगा। यह बात सुनते ही किसी तरह से बोस्तान ने असद को जेल से बाहर निकाला और वहां लेकर गई जहां से एलान की आवाज आ रही थी।
सेवकों ने असद के मिलने की जानकारी सीधे मंत्री अमजद को दी। वह सीधे असद के पास पहुंचा और उसे गले से लगा लिया। उसके बाद वो असद और बोस्तान को बादशाह के पास लेकर चला गया। बादशाह ने वादे के अनुसार उन्हें खूब सारा पैसा दिया और जिसने असद को बंद करके रखा था, उसके घर को खुदवा दिया।
साथ ही वहां मौजूद सभी लोगों को पकड़कर बादशाह के पास लाया गया। उस जहाज के कप्तान बहराम ने बादशाह से दया की भीख मांगते हुए कहा कि मैंने तो जैसा मालिक ने बताया वैसा ही किया। आप मुझे छोड़ दीजिए। बादशाह ने सिर्फ उसके मालिक और परिवार वालों को दंड दिया और बाकी सबको खर्चे के पैसे देकर छोड़ दिया।
सजा न मिलने पर बहराम ने अजमद और असद से कहा कि मुझे अभी पता चला है कि आप बादशाह कमरुज्जमां के बेटे हैं। मैं कुछ समय पहले आपके राज्य गया था। मुझे वहां पता चला कि आपके पिता आप दोनों की याद में बहुत रो रहे हैं। उन्हें आपकी माताओं की साजिश के बारे में पता चल गया था और उन्हें अपनी करनी पर पछतावा है। उन्हें उनके मंत्री ने भी बता दिया था कि आपको उसने प्राणदंड नहीं दिया है। तब से वो आप दोनों को ढूंढ रहे हैं।
बहराम ने आगे कहा कि मेरे पास जहाज हैं। आप चाहें, तो मैं आप दोनों को वहां पहुंचा सकता हूं। इस बात को सुनकर दोनों भाई खुश हो गए और बादशाह से अपने घर जाने की आज्ञा मांगी। तभी सामने से एक बड़ी सी सेना के आने की खबर बादशाह को मिली। उन्होंने तुरंत अमजद को जाकर देखने के लिए कहा कि पता करो, किस दुश्मन ने हम पर हमला किया है।
वहां पहुंचकर अमजद को पता चला कि जहाज में एक महिला बड़ी सी सेना के साथ आ रही है। अमजद ने उस महिला से सेना के साथ आने का कारण पूछा, तो महिला ने बताया कि मैं मरजीना हूं। बहराम नाम का कप्तान मेरे पास से असद को लेकर भाग आया है। उसे मैंने अपने महल में काम पर रखा था।
अमजद ने मुस्कुराते हुए कहा कि असद मेरा छोटा भाई है। आप उससे यहीं मिल सकती हैं। हम उसे बचाकर ले आए हैं। यह सुनकर मरजीना बहुत खुश हुई और सेना को पीछे उसका इंतजार करने के लिए कहकर आगे की ओर बढ़ गई। अमजद ने उसे बादशाह और असद से मिलवाया।
इतने में एक और सेना उस राज्य की तरफ आने की खबर मिली। दोबारा अमजद उनसे आने का कारण पूछने के लिए गया। इस बार पता चला कि चीन से बादशाह गोर अपनी बेटी बदौरा और दामाद को ढूंढते हुए वहां पहुंचे हैं। अमजद को जैसे ही उनके बारे में पता चला, तो उसने तुरंत उनको आदाब करते हुए कहा कि मैं बदौरा और कमरुज्जमां का बेटा यानी आपका नाती हूं। अभी मेरे पिता अवौनी में खुशी-खुशी मां के साथ रह रहे हैं। इतना सुनते ही बादशाह गोर ने अपने नाती को गले से लगा लिया। अमजद उन्हें भी बादशाह के पास ले गया और असद से परिचय करवाया।
अभी सब लोग आपस में बात कर ही रहे थे कि अचानक एक और बड़ी सी सेना की उस राज्य की ओर आने की खबर मिली। बादशाह ने अमजद से कहा, “जरा जाकर देखो कि यह तीसरी सेना किसकी आ रही है।” अमजद ने जाकर पूछताछ की, तो पता चला कि उसके पिता कमरुज्जमां वहां अपनी सेना के साथ अपने बेटों की तलाश में आए हैं। यह देखकर अमजद जल्दी से अपने पिता के गले लग गया। वह उन्हें जल्दी महल में ले गया और तीनों बाप बेटे गले लगे। फिर कमरुज्जमां ने अपने ससुर यानी चीन के बादशाह गोर को भी वहां देखा और खुशी से उन्हें आदाब कहा।
अब कमरुज्जमां, उसके दोनों बेटे, उनके ससुर, मरजीना उस राज्य के बादशाह के साथ बैठकर बातें कर रहे थे। उसी वक्त चौथी सेना की टुकड़ी की उनके राज्य की ओर आने की खबर आई। बादशाह ने कहा, “आज तो हमारे राज्य में चारों तरफ से सेनाएं आ रही हैं। देखो अब कहीं सच में कोई दुश्मन तो नहीं आ गया है।”
अमजद एक बार फिर सेना के बारे में जानने के लिए पहुंच गया। तब उसे सेनापति ने बताया कि कमरुज्जमां के पिता सालों से अपने बेटे की तलाश में इधर-उधर भटक रहे हैं। वो अपनी सेना के साथ अपने बेटे के बारे में जानने के लिए खलदान से आए हैं। अगर आपको कमरुज्जमां के बारे में कुछ पता हो, तो बता दीजिए।
अमजद ने हंसते हुए कहा कि खलदान के बादशाह को आप यहां बुला लीजिए। अब जिन्हें आप ढूंढ रहे हैं, उन्हें और खोजने की जरूरत नहीं पड़ेगी। वो यहीं इसी राज्य में कुछ ही दूरी पर हैं। कमरुज्जमां के पिता को जैसे ही यह समाचार मिला वो खुशी के मारे रोने लगे। वो दौड़ते हुए अमजद के साथ आगे बढ़े।
अमजद उन्हें सीधे वहां ले गया, जहां सब एक साथ बैठे थे। अपने बेटे कमरुज्जमां को देखते ही बादशाह शाहजमां ने उसे गले से लगा लिया। अपने बेटे से शाहजमां ने कहा कि ऐसा क्या हो गया कि तुम आज तक मेरे पास लौटकर नहीं आए। मैंने तुम्हें कितना ढूंढा। इतना कहकर वो रोने लगे। उसके बाद कमरुज्जमां ने अपने पिता से असद और अमजद की पहचान करवाई। उसके बाद चीन से आए बादशाह गोर से भी मुलाकात करवाई। खलदान के बादशाह शाहजमां सबसे मिलकर काफी खुश हुए।
उसके बाद कमरुज्जमां ने अपने पिता को अब तक का सारा किस्सा सुनाया। फिर सभी ने सलाह-मशवरा करके असद का विवाह मरजीना से और अमजद का विवाह असद की जान बचाने वाली लड़की बोस्तान से करने का फैसला लिया। दोनों का धूमधाम से विवाह हुआ और कई दिनों तक जश्न चला। फिर चीन से आए बादशाह गोर, खलदान के बादशाह शाहजमां और उनका बेटा कमरुज्जमां सभी अपने-अपने देश लौट गए।
इतनी कहानी सुनाकर शहरजाद ने शहरयार से कहा कि मुझे उम्मीद है कि आपको यह कहानी अच्छी लगी होगी। मेरे पास ऐसी ही कई सारी कहानियां हैं। अगर मुझे प्राणदंड नहीं दिया जाएगा, तो मैं कल दोबारा से एक नई और इससे भी रोमांचित कहानी सुनाऊंगी। यह कहानी नूरुद्दीन और फारस देश की दासी की है। नई कहानी सुनने की चाह रखते हुए बादशाह शहरयार ने एक और दिन के लिए प्राणदंड रोक दिया और अगले दिन शहरजाद से कहानी सुनाने के लिए दोबारा आने की बात कही।