अलिफ लैला – ( Part 3 ) कमरुज्जमां और बदौरा की कहानी

बादशाह गोर ने भी खुशी-खुशी उन्हें जाने की इजाजत देते हुए जल्दी लौटकर आने को कहा। पिता से इजाजत मिलने के बाद बदौरा अपने पति और सेवकों के साथ निकल पड़ी। उसने कमरुज्जमां से कहा कि आप अब ज्यादा दुखी न हों। यहां से हम आपके पिता से मिलने जाएंगे। शहजादा कमरुज्जमां खुश हो गया। दोनों कुछ दूर आगे बड़े ही थे कि शहजादे की नजर बदौरा की कमर पर पड़ी। उसमें एक लाल रंग की पेटी बंधी हुई थी। कमरुज्जमां उससे लाल रंग की पेटी के बारे में पूछने ही वाले थे कि तबतक बदौरा ने उस पेटी को कमर से उतरकर जमीन में रख दिया और सो गईं।
शहजादा भी बदौरा के पास लेट गया और कुछ देर तक उस पेटी को देखता रहा। फिर शहजादे ने उस लाल पेटी को खोलकर देखा। पेटी को खोलने के बाद शहजादे को उसमें एक लाल रंग का बड़ा सा रत्न मिला, जो बहुत ही खूबसूरत था। उस रत्न पर छोटे अक्षरों में कुछ लिखा हुआ था। कमरुज्जमां उसे खोलकर देख ही रहे थे कि तब तक कही से एक बड़ा पक्षी आया और उस रत्न को लेकर उड़ गया। काफी देर तक शहजादे ने उस पक्षी का पीछा किया, लेकिन वो पक्षी पकड़ में न आया।
थक हारकर शहजादा एक पेड़ के नीचे बैठ गया। उसी पेड़ के पास वो पक्षी भी आ गया। उसे देखकर कमरुज्जमां फिर दौड़कर उसका पीछा करने लगा। भागते-भागते कमरुज्जमां किसी अनजान राजा के नगर में पहुंच गया। वहां कोई भी उससे बात नहीं कर रहा था। उसने कुछ दूर में एक बगीचा देखा। कमरुज्जमां को भूख लगी थी, वो दौड़कर बाग के अंदर जाने लगा। अनजान व्यक्ति को बगीचे की ओर तेजी से आते देख बगीचे के माली ने बाग का गेट बंद कर दिया।
माली ने कहा, “तुम इस राज्य के नहीं लगते हो। राज्य तो छोड़ों तुम इस देश के भी नहीं लगते हो। यहां परदेसियों को देखते ही मार दिया जाता है। जल्दी से यहां से भाग जाओ।” इतना सुनकर कमरुज्जमां ने अपना पूरा हाल सुना दिया और कहा कि मैं भटकर यहां पहुंच गया हूं। आप मुझे अपने देश जाने की दिशा दिखाएं। माली को उस पर तरस आ गया। उसने कहा कि तुम यहां रहकर कुछ खा लो और आराम कर लो, लेकिन यहां तुम्हें सबसे छिपकर रहना होगा। माली ने आगे कहा कि तुम जिस द्वीप से आए हो, वो करीब एक साल की दूरी पर है। वहां जाने के लिए हर साल एक जहाज जाता है। मैं तुम्हें उसमें बैठा दूंगा। तब तक तुम यहां आराम से रह सकते हो।
कमरुज्जमां ने ठीक वैसा ही किया। उधर कमरुज्जमां की पत्नी बदौरा की जब नींद खुली, तो वो अपने बगल में पति को न पाकर परेशान हो गई। उसने बगल में अपनी कमर की लाल रंग की पेटी को खुला देखा। वो समझ गई कि इसे उसके पति ने ही खोला होगा, लेकिन उसके अंदर का रत्न गायब था। असर में वह एक यंत्र था, जिसे बदौरा की मां ने उसकी हिफाजत के लिए उसे दिया था। उसे लगा कि शहजादा उस यंत्र की वजह से ही कही चला गया है या फिर किसी मुश्किल में पड़ गया है। उसने एक दो-दिन तक कमरुज्जमां का इंतजार उसी जगह पर किया, लेकिन जब वो नहीं लौटा तो बदौरा और परेशान हो गई।
बदौरा ने तय किया कि वो राजा के भेष में आगे की यात्रा करेगी, ताकि उन्हें कमजोर समझकर उन पर कोई हमला न कर दे। उसने अपनी जगह पालकी में एक दासी को बैठा दिया और खुद शहजादे के कपड़े पहनकर उसकी पालकी में बैठ गई। सभी आगे बढ़ते हुए अवौनी देश पहुंच गए। वहां के बादशाह अश्शम्स को जब पता चला कि कमरुज्जमां की पालकी पास से जा रही है, तो वो उनसे मिलने आ गया। उन्होंने कमरुज्जमां को कभी देखा नहीं था, तो उसकी पत्नी बदौरा को पुरुष भेष में देखकर कमरुज्जमां समझ लिया।
अवौनी देश के बादशाह अश्शम्स ने बदौरा को कमरुज्जमां समझकर अपने महल चलने के लिए कहा। वहां बदौर की बुद्धि और सबके लिए आदर भाव देखकर बादशाह ने अपनी बेटी की शादी का प्रस्ताव कमरुज्जमां बनी बदौरा के सामने रखा। उन्होंने कहा कि मेरा बेटा नहीं है, इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम यहां का राजपाट संभालते हुए यही रहो। बदौरा बादशाह को मना नहीं कर पाई और अपनी जान के डर से सच भी न बता सकी। उसने डर के मारे बादशाह की बेटी से शादी कर ली।
विवाह की पहली रात ही बदौरा ने अवौनी देश के बादशाह अश्शम्स की बेटी को सब सच बता दिया। उसके बाद पुरुष के भेष में बदौरा ने कहा कि अब तुम चाहे, तो मुझे प्राण दंड दिलवा दो या छोड़ दो। सबकुछ तुम पर निर्भर करता है, लेकिन मैं तुम्हें बता दूं कि जब कभी भी मेरे पति लौटेंगे मैं तुम्हारा विवाह उनसे करवा दूंगी। फिर हम तीनों खुशी-खुशी रहेंगे। बादशाह अश्शम्स की बेटी ने उसे तुरंत गले से लगा लिया और कहा कि मैं आपके सहास की तारीफ करती हूं। आप यहां आराम से रहिए और हमारी सेना कि मदद से अपने पति को ढूंढती रहिए, मैं किसी से कुछ भी नहीं कहूंगी।
वहां कमरुज्जमां अपनी पत्नी बदौरा की याद में तड़प रहा था। इंतजार करते-करते वो दिन आ ही गया जब जहाज वहां से अवौनी राज्य के लिए रवाना होने वाला था। उसी दिन एक पक्षी ने कुछ सुनहरी सी चीज उस बगीचे में गिरा दी। जब कमरुज्जमां ने देखा, तो पता चला कि वो वही यंत्र है, जिसका पीछा करते-करते वो रास्ता भटक गया था। कमरुज्जमां बहुत खुश हुआ। उसने उस यंत्र को एक मटके में डाल दिया और माली ने उसे करीब 10-20 मटके में जैतून का तेल भरकर तोहफे के रूप दे दिया। तभी जहाज को चलाने वाला व्यक्ति माली के घर आया और कहा कि जिसे भी जहाज से जाना है जल्दी चले आना, क्योंकि हम कुछ देर में चले जाएंगे। इतने में कमरुज्जमां ने कहा कि मुझे जाना है। मैं कुछ देर में आ जाऊंगा, लेकिन तबतक आप मेरे मटके लेकर जहाज में रख दीजिए। जहाज के कप्तान ने सारे मटके जहाज पर रखवा दिए।
तभी अचानक माली की तबीयत खराब हो गई और कमरुज्जमां जहाज वक्त पर जहाज पर नहीं पहुंच पाया। जब वो समुद्र किनारे पहुंचा, तो देखा कि जहाज निकल गया था। वो बहुत दुखी हो गया। दुखी होकर वो माली के पास वापस आया, तो देखा कि माली मर चुका था। उसने माली को अंतिम विदाई दी और जहाज के वापस आने का इंतजार वही बगीचे में बैठकर करने लगा। अब शहजादा माली की जगह पर रोज बगीचे की देखभाल करता और रात को बदौरा को याद करके सो जाता।
जब जहाज अवौनी के तट पर पहुंचा, तब वहां कमरुज्जमां के भेष में बदौरा उसी जहाज के पास पहुंच मौजूद थी। उसने जहाज चलाने वाले और उसमें मौजूद व्यापारियों से कहा, “इसमें जितना भी जैतून का तेल है, वो मुझे दे दो।” कमरुज्जमां के कहे अनुसार सभी ने अपने-अपने जैतून के तेल के मटके उसे बेंच दिए। तभी बदौरा की नजर उन मटकों पर पड़ी जिसे कमरुज्जमां ने जहाज पर रखवाया था। बदौर ने पूछा कि ये मटके किसके हैं? इनमें क्या है? तब जहाज के कप्तान ने बताया कि यह एक छोटे व्यापारी के मटके हैं, जिसका जहाज छूट गया था। इसमें भी जैतून का तेल है। बदौरा ने उन मटको को भी खरीद लिया और उससे कहा कि इसके पैसा ले जाकर उस मुसाफिर को देना।
फिर बदौरा सारे मटके लेकर महल चली गई। कमरुज्जमां ने पहचान के लिए उस मटके को अलग से सजा रखा था, जिसमें बदौरा का यंत्र था। सभी मटके में से उसे सबके अलग देखकर पुरुष के भेष में रह रही बदौरा ने उसे खोलकर देखा तो उसमें उसे अपना यंत्र मिला। अपने खोए यंत्र को देखखर बदौरा बहुत खुश हुई। अगले ही दिन वह सीधे उस जहाज को चलाने वाले व्यक्ति के पास पहुंची और कहा कि जल्दी से उस मुसाफिर को मेरे पास लेकर आओ, जिसके मटके तुम्हारे जहाज पर थे। हमें पता चला है कि उसने हमारे राज्य का काफी सारा कर्ज ले रखा है। अगर तुम उसे यहां नहीं लाए, तो मैं तुम सबको बंदी बना लूंगा।
इतना कहकर उसने मंत्री होने के नाते जहाज का सारा सामान जब्त कर लिया और व्यापारियों को अपने पास रख लिया। उसने कहा तुम जल्दी से लौटकर आओ और सारा सामान व व्यापारियों को लेकर चले जाओ। जहाज का कप्तान मजबूर होकर वापस उसी देश चला गया जहां से आया था। कुछ ही दिन में वहां पहुंचकर वो सीधे बगीचे गया और दरवाजा खटखटाने लगा। कमरुज्जमां गहरी नींद में सो रहा था। उसने काफी देर बाद दरवाजा खोला।