अलिफ लैला – ( Part 2 ) कमरुज्जमां और बदौरा की कहानी

इतना सुनते ही शहजादे ने अपने पिता को उस लड़की की नीले रंग की अंगूठी दिखाई। उसे देखकर बादशाह हैरान हो गए। उन्होंने सबसे पूछवाया कि वह नीला रत्न कौन सा है, लेकिन उनके राज्य में और पूरे फारस में ऐसा रत्न किसी ने नहीं देखा था। तब राजा ने शहजादे को कहा कि तुम चिंता मत करो हम उस लड़की को ढूंढ निकालेंगे। हम उसे इधर ढूंढते हैं और तुम हमारे नदी के किनारे वाले महल में चले जाओ। वहां परदेसी भी आते हैं। तुम उनसे इस रत्न के बारे में पूछ सकते हो। शहजादा इस बात को मान गया और नहा धोकर अपने नदी किनारे वाले महल के लिए निकल पड़ा।
वहीं दूसरी ओर चीन में गोर बादशाह की बेटी बदौरा का हाल भी कुछ ऐसा ही था। उसने भी सुबह होते ही अपने बगल में सो रहे लड़के के बारे में पूछा। सब उसके सवालों से भी परेशान हो गए। जब लड़की ने अपने पिता को हीरे की अंगूठी दिखाई, तो बादशाह गोर भी हैरान हो गए। यह हीरे की अंगूठी उनकी बेटी की नहीं थी। काफी सोचने-विचारने के बाद भी जब कुछ समझ न आया तो उन्हें लगा कि उनकी बेटी पागल हो गई है। कही से वह यह अंगूठी पा गई है और कह रही है कि उसे कोई खूबसूरत लड़का दे गया है।
इस विचार के साथ कि उनकी बेटी बदौरा की मानसिक स्थिति काफी खराब हो गई है, उन्होंने अपनी बेटी को सोने की जंजीरों से बंधवा कर दूसरी काल कोठरी में डाल दिया। साथ ही इस बात का भी एलान करा दिया, “जो भी मेरी बेटी को ठीक करेगा। मैं उससे अपनी बेटी की शादी करा दूंगा। साथ ही उसे अपने राज्य का नया राजा भी घोषित करूंगा।” इसके साथ ही बादशाह ने एक शर्त भी रख दी कि उसकी बेटी को ठीक करने का दावा करने वाला अगर असफल रहा तो उसे मौत की सजा दे दी जाएगी। इस घोषणा के बाद कई हकीम शहजादी को ठीक करने के लिए आए, लेकिन शहजादी को ठीक नहीं कर पाए। इस कारण बादशाह ने ऐलान के अनुसार उन्हें मौत की सजा दे दी।
तभी एक दिन शहजादी का मुंहबोला भाई मर्जुबन दूसरे देश से चीन लौटा। वहां पहुंचते ही उसे शहजादी बदौरा के बारे में पता चला। वो तुरंत लड़की का भेष बनाकर किसी तरह से उस काल कोठरी में पहुंच गया। उसने शहजादी के पास जाकर कहा कि मैं लड़की के भेष में मर्जुबन हूं। हम दोनों ने बचपन में एक ही मां का दूध पिया था। इस नाते तुम मेरी बहन हो और हम दोनों एक साथ खूब खेले हैं, तो तुम मेरी दोस्त भी हुई। इसलिए मुझे बताओ आखिर हकीकत क्या है? ऐसा क्या रोग तुम्हें लग गया, जिसके कारण बादशाह नें तुम्हे यूं बेड़ियों में बांध के रखा है।
बदौरा ने कहा, “मर्जुबन तुम दूसरों की तरह मुझे रोगी मत कहो। इतना कहने के बाद शहजादी ने उसे अंगूठी और उस रात के बारे में बताया।” यह सब सुनकर मर्जुबन हैरान हो गया। उसने कहा कि वैसे तो तुम्हारी बात यकीन करने लायक नहीं है, फिर भी मुझे तुम पर भरोसा है। अब तुम चिंता मत करो, मैं उस लड़के को कहीं से भी ढूंढकर तुम्हारे पास लाऊंगा। इतना कहकर वो वहां से छुपते-छुपाते निकल गया।
अब मर्जुबन हीरे की अंगूठी वाले लड़के की खोज करने लगा। जब चीन में उसे ऐसे किसी लड़के के बारे में पता नहीं चला तो वह चीन से बाहर निकल पड़ा। करीब छह महीने तक वो हर जगह जाता और हर किसी से ऐसे लड़के के बारे में पूछता, जिसके पास नीली अंगूठी हो या ऐसा कोई जो किसी लड़की को ढूंढ रहा हो। कई जगहों पर घूमते-घूमते एक दिन मर्जुबन एक अंजान जहाज में बैठ गया। वह जहाज मर्जुबन को उस जगह ले गया, जहां शहजादा कमरुज्जमां था।
तट पर पहुंचने से पहले ही एक भयानक तूफान आया, जिसकी वजह से वह जहाज तहस-नहस होकर डूब गया। मर्जुबन अच्छा तैराक था, इस कारण वह बच गया और लकड़ी के एक तख्ते के सहारे खुद को किनारे तक ले आया। उस वक्त शहजादा कमरुज्जमां तट पर ही मौजूद था। उसने दूर से देखा कि कोई अनजान व्यक्ति समुद्र में डूब रहा है। शहजादे ने अपने सैनिकों को भेजकर उसे बचाकर लाने का आदेश दिया। जान बचने के बाद भी मर्जुबन खुश नहीं था। उसे इतना उदास देखकर लोगों ने शहजादे को मर्जुबन के बारे में बताया।
इस पर कमरुज्जमां ने खुद मर्जुबन से मिलने का फैसला किया और वहां पहुंच गया जहां मर्जुबन को ठहराया गया था। शहजादे नें मर्जुबन से पूछा, “क्या हुआ? तुम इतने उदास क्यों हो।” दुखी मन से मर्जुबन ने उस अंगूठी का जिक्र करते हुए अपनी बहन बदौरा के हाल के बारे में बताया। तब शहजादे ने मर्जुबन को अपनी उंगली में वो नीली अंगूठी दिखाई और कहा कि वो मैं ही हूं, जिसे तुम ढूंढ रहे हो। चलो, मुझे जल्दी से उस शहजादी के पास ले चलो।
उसके बाद खुशी होकर शहजादा सबसे पहले अपने पिता के पास गया। अपने बेटे को सालों बाद खुश देखकर बादशाह का चेहरा भी खिल उठा, लेकिन कमरुज्जमां ने अपनी खुशी का कारण अपने पिता को नहीं बताया। पिता शहजादे को चीन जाने की इजाजत नहीं देंगे, इस डर से शहजादे ने कहा कि मुझे एक वर्ष के लिए भ्रमण पर जाना है। बादशाह इतने दिनों के लिए बेटे को खुद से दूर तो नहीं जाने देना चाहते थे, लेकिन इतने दिनों बाद उसे इतना खुश देखकर वो मना नहीं कर पाए और भ्रमण पर जाने की इजाजत दे दी।
पिता की आज्ञा पाकर मर्जुबान के साथ शहजादा चीन के लिए निकल पड़ा। रास्ते में मर्जुबान ने शहजादे कमरुज्जमां से कहा कि आपको हकीम के भेष में वहां जाना होगा, क्योंकि बादशाह ने अपनी बेटी से सिर्फ उसे ठीक करने वाले लोगों से ही मिलने की इजाजत दे रखी है। उन्होंने ऐलान कराया है कि जो भी उनकी बेटी को ठीक करेगा, वो उसकी शादी अपनी बेटी से करा देंगे। वहीं नाकाम होने पर मौत की सजा दे दी जाएगी।
कई महीनों की लंबी यात्रा के बाद कमरुज्जमां चीन पहुंचा हकीम। वहां पहुंच कर मर्जुबन के कहने पर हकीम के कपड़े पहने और बादशाह गोर से मिलने पहुंच गया। कमरुज्जमां ने बादशाह से कहा कि मैं आपकी बेटी को ठीक करने के लिए परदेस से आया हूं। आप जल्दी से मुझे वहां ले जाएं। बादशाह ने कहा कि तुम जैसे बहुत आए और मौत के घाट उतार दिए गए। जाओ, देखते हैं कि तुम क्या करोगे। इतना कहकर बादशाह ने एक सैनिक से कमरुज्जमां को शहजादी बदौरा के पास ले जाने के लिए कहा।
काल कोठरी के पास पहुंचकर कमरुज्जमां रूक गया। सैनिक ने कहा, “अरे क्या हुआ, आप रूक क्यों गए।” तभी उसने एक खत में उस रात की बात और नीली अंगूठी रखकर वहां मौजूद सेविका को देकर कहा कि इसे शहजादी के पास पहुंचा दो। फिर सैनिक की बात का जवाब देते हुए कहा कि मैं उसका इलाज बाहर से ही कर सकता हूं।
सेविका से कमरुज्जमां की चिट्ठी मिलने के बाद शहजादी बदौरा खुशी से फूली नहीं समाई। तब उसने अपनी सेविका से कहा, “मुझे खोल दो। अब मैं बिल्कुल ठीक हूं, मेरे रोग की दवा मिल गई है।” सेविका ने कई सालों से शहजादी को इस तरह मुस्कुराते और हंसते नहीं देखा था। इसलिए उसे भी लगा कि वो ठीक हो गई हैं। यह सोचकर उसने शहजादी की बेड़ियां खोल दीं और खुद भागकर बादशाह को यह खुशखबरी सुनाने चली गई।
इस बीच शहजादी बदौरा काल कोठरी से बाहर खड़े कमरुज्जमां से मिलने पहुंच गई। कमरुज्जमां को सामने देख शहजादी ने उसे गले से लगा लिया और फिर दोनों एक दूसरे से बात करने लगे। वे आपस में बात कर हे रहे थे कि तभी बदौरा के पिता वहां पहुंच गए। उन्होंने कमरुज्जमां से पूछा कि तुमने ऐसा चमत्कार कैसे कर दिखाया। तब कमरुज्जमां ने बादशाह को सब कुछ सच बता दिया।
उसने कहा कि मैं कोई हकीम नहीं हूं। मैं वही लड़का हूं, जिसकी याद में आपकी बेटी आजतक पागल बनी हुई थी। फिर शहजादे ने बादशाह को उस रात के बारे में बताया। यह सब सुनकर बादशाह गोर हैरान हो गए। खैर अब बादशाह को इस बात की खुशी थी कि उनकी बेटी ठीक हो गई है और उन्हें अपनी बेटी के लिए एक खूबसूरत शहजादा भी मिल गया।
तब बादशाह ने शर्त के अनुसार, अपनी बेटी की शादी कमरुज्जमां से करवा दी। शादी के बाद बादशाह ने अपने दामाद को अपने महल में एक ऊंचा पद दे दिया। कुछ दिन खुशी-खुशी रहने के बाद कमरुज्जमां उदास हो गया। जब बदौरा ने उससे दुख का कारण पूछा, तो उसने कहा कि वो पिता की याद में दुखी है। इतना सुनते ही बदौरा ने अपने पिता से साल भर के लिए राज्य से दूर घूमने जाने के लिए अनुमति मांगी।